“कूप-मण्डूक होना” मुहावरे का व्याख्या।
“कूप-मण्डूक होना” इस मुहावारे का अर्थ सीमित ज्ञान होना अथवा किसी भी कार्य मे कम अनुभव का होना होता है। या फिर हम ये कह सकते है कि संकुचित ज्ञान का होना होता है।
मेरे बड़े पापा को वैसे कहे तो उनको आता तो कुछ भी नही है। पर वे अपने आप को ये दिखलाने मे पीछे नही रहते है कि उनको सब कुछ आता है। अगर हमारे घर मे कोई भी समस्या आ जाती है तो बड़े पापा तुरंत समाधान बताने आ जाते है। और फिर उनके समाधान से घर का कोई भी सदस्य संतुष्ट नही होता है।इन्ही सब कारणो से उनकी घर मे कोई इज़्ज़त नही है। वे हमेशा मेंढक की भांति सबके बिच मे कूद पड़ते है। जिसकी वजह से घर के सब लोग उन्हे “कूप-मण्डूक होना” कहते है। उनके पास असीमित ज्ञान के होते हुए भी अपने आप को हर काम मे निपुड़ समझते है। वे एक संकुचित विचार वाले है। ऐसे व्यक्ति को ही कहते है “कूप-मण्डूक होना”।
Koonp Mandook Hona, Muhaavare Ka Art / कूप- मण्डूक होना मुहावरे का अर्थ।
- मुहावरा – “कूप- मण्डूक होना”।
– (Muhavara – Koonp Mandook Hona). - हिंदी मे अर्थ – सीमित ज्ञान होना / अनुभवहीन होना / किसी कार्य में निपुड़ ना होना / संकुचित विचार रखने वाले व्यक्ति ।
– (Meaning in Hindi – Simit Gyan Ka Hona / Anubhavhin Hona / Kisi Karya me Nipud na Hona / Sankuchit Vichar rakhne Wale Vyakti).
“कूप-मण्डूक होना” मुहावरे का वाक्य प्रयोग / Koonp Mandook Hona Muhavare Ka Vaky Prayog.
“कूप-मण्डूक होना” मुहावरे का वाक्य प्रयोग नीचे उदाहरण देकर समझया जा रहा है। इसे ध्यान पूर्वक पढ़िए और समझिये।
उदाहरण 1.
राजेश की कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद पर अभी नयी नयी नौकरी लगी है। ये राजेश की अभी पहली नौकरी है। उसे किसी भी कार्य का अनुभव नही है। इसलिए उसे अभी एक महीने के लिए ट्रेनिंग मे रखा गया। अभी राजेश को ट्रेनिंग लेते हुए दो चार दिन ही हुए। पर राजेश को लगने लगा की वो तो उस काम को बहोत ही आसानी से कर लेगा। इसी वजह से वो सबके कार्यो मे कोई ना कोई कमी निकालने लगा। राजेश को जिसके भी साथ ट्रेनिंग के लिए लगाया जाता वो उसे ही सलाह देने लगता। राजेश को अभी सिमित अनुभव था। वह कार्य मे अभी निपुड़ नही था। पर वो सबके सामने अपने आप को ऐसे दिखता की उसे सब कुछ आने लगा है। राजेश का सिमित अनुभव ही उसके लिए “कूप-मण्डूक होना” है।
उदाहरण 2.
विद्यालय मे 26 जनवरी(गणतंत्र दिवस) के शुभ अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कराने के लिए सभी अध्यापको का सलाह मांगा गया। सभी अध्यापको ने कार्यक्रम को कराने के लिये हामी भरी। अब बारी थी की कार्यक्रम कराने की ज़िम्मेदारी कौन लेगा? रेशमा नाम की अध्यापिका अभी विद्यालय नयी थी। पर जब से उसकी विद्यालय मे नियुक्ति हुयी है, तभी से वो सबके नज़र मे अपनी अच्छी छवी बनाने के लिये हमेशा तत्पर रहती थी। मतलब की उसे कोई भी कार्य करने को कहा जाता वो उस कार्य को करने के लिये हा बोल देती थी। पर हकीकत तो ये थी की अभी वो “कूप-मण्डूक होना” जैसे थी। 26 जनवरी नजदीक अगयी ।
कार्यक्रम कराने की ज़िम्मेदारी भी रेशमा जी ने ही लिया था। फिर क्या था उनका कार्यक्रम कराने के विषय मे अनुभवहीन होना या उस विषय मे सिमित अनुभव होने (कूप-मण्डूक होना) के कारण कार्यक्रम की तैयारी अच्छे से नही हो पायी। जिसकी वजह से 26 जनवरी के दिन विद्यालय पर आये अतिथियों का मनोरंजन सही तरीके से नही हो पाया। और विद्यालय परिवास असहज़ महसूस किया। कारण यह था की रेशमा जी का संकुचित विचार या यूं कहे तो उनका अनुभवहीन होना “कूप-मण्डूक होना” के समान था।
उदाहरण 3.
घर पर बड़ी बहन की सादी थी। सारी तैयारियां हो चुकी थी। सब ने शादी के दिन की जिम्मेदारियां ले ली थी। मतलब की टेंट का व्यवस्था कौन देखेगा, मिष्ठान की व्यवस्था कौन संभालेगा, बारातियों के बैठने की ज़िम्मेदारी कौन लेगा और भी जितनी जिम्मेदारियां थी सब ने ले ली थी। इन सब मे एक ज़िम्मेदारी थी भोजन बनवाने की और बारातियों को खिलाने की। इसकी ज़िमेदारी हमारे फूफा जी ने लिया था।
क्योंकि जबसे सादी की तैयारियां चल रही थी तभी से फूफा जी बोल रहे थे की भोजन की ज़िम्मेदारी मेरी रहेगी। और हुआ भी ऐसा ही था। पर फूफा जी को पता था की उनको भोजन बनवाने का अनुभव नही था। वे संकुचित विचार वाले थे। कार्य की कम जानकारी होने के बाद भी उन्होंने ये दिखाया की वो इस कार्य को अच्छे से कर लेंगे। अब फूफा जी ने भंडारियों को निर्देश देना शुरु कर दिये। फूफा जी अपने हिसाब से भोजन बनवा रहे थे। भंडारियों ने कुछ बोलना चाहा तो फूफा जी ने उन्हे टोकते हुआ उनसे बोला, कि अपना दिमाग़ मत लगाओ।
जैसा मै कहता हु वैसा ही करो। भंडारिओ ने वैसा ही किया। भोजन बन कर तैयार था। बाराती भी भोजन करने को तैयार थे। बारातियों के सामने भोजन परोसा गया। और फिर उन लोगो ने खाना चालू किया। पर जैसे ही बारातियों ने भोजन मुह में डाला वो भोजन की बुराईया करने लगे। भोजन मे नमक ज्यादा हो गया था। सब्जियां तीखी हो गयी थी। सारे बाराती भोजन कि तैयारी से नाराज़ थे। फूफा जी के अनुभवहीन होने कि वजह से हम लोग लज़्ज़ीत थे। फूफा जी को कार्य की कम जानकारी थी। फूफा जी के इसी कार्य कि सिमित जानकारी को हम “कूप-मण्डूक होना” कहते है।
हम उम्मीद करते है कि आप को इस मुहावरे “कूप-मण्डूक होना” का मतलब अच्छे से समझ मे आगया होगा। अगर आपको कोई सुझाव देना हो तो निचे कमेंट बॉक्स मे लिख कर हमतक पहुचा सकते है।
अगर आपको किसी मुहावरे का मतलब समझना हो तो उस मुहावरे हो कमेंट बॉक्स मे लिख कर हम तक पहुचाये।
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